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मैंने अपने पिछले आलेख ‘आखिरी रात जिस बिस्तर पर….’ में आपको जिंदगी के उस पहलू से रूबरू कराया जिसमें मैं एक पूरी रात तन्हाई के साथ गुजार देती हूं। मेरे साथ तन्हाई थी पर सोचा कि तन्हाई का साथ देने वाला भी कोई चाहिए इसलिए मेरे दिल ने उसे पुकारा और वो मेरे सामने हाजिर हो गई…मैंने अपने पिछले आलेख को इस पंक्ति के साथ समाप्त किया था और अब यहीं से शुरू कर रही हूं। मेरी तन्हाई के आलम में मेरा साथ एक ऐसी चीज देती है जिसमें इतना नशा है कि जिसे पी लेने के बाद दुनिया के किसी और नशे की तलब नहीं रहती है।
तन्हाई का आलम था और दिल इस तन्हाई के साथ खेलने के नए-नए पैंतरे खोज रहा था…आखिरकार तन्हाई को बहलाना सरल काम तो नहीं। मैंने तन्हाई को समझाया कि ‘देख ए तन्हाई तू मेरे पास मत आ..देख मैं तन्हां कहां हूं! मेरे पास दुनिया के वो तमाम सुख हैं जिसे प्राप्त करना किसी भी स्त्री का सपना होता है। मैं हसीन हूं इसलिए मुझे देख किसी भी लड़के के दिल में मुझे पाने की लालसा उत्पन होती है और मुझे स्पर्श करने का सपना उनकी आंखों में जा बसता है’। तन्हाई को समझाने के लिए मैंने तमाम जतन कर लिए पर हासिल कुछ ना हुआ। जैसे-जैसे रात का अंधेरा अधिक होता जा रहा था वैसे-वैसे तन्हाई भी मेरे पास आती चली जा रही थी। ऐसे मैं समझ नहीं आ रहा थी कि क्या करूं ?
हां, मेरे पास एक ऐसा बाण था जो तन्हाई को मेरे पास भी भटकने नहीं देता। ‘शराब’ भी क्या चीज है…व्यक्ति इसे तब पीता है जब वो तन्हा होता है पर उसे कहां मालूम होता है कि इसे पीने के बाद वो और तन्हां हो जाता है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मेरे मन में भी एक डर था कि कहीं मैं तन्हाई के भय से बचने के लिए शराब को अपना साथी ना बना लूं। वैसे भी हमारे खोखले समाज में लड़कियों का शराब पीना बेहतर नहीं माना जाता है। सीधे शब्दों में कहूं तो शराब का जाम लेने वाली स्त्री को चालू, बेहया जैसे कई तरह के नाम दिए जाते हैं पर मेरी आत्मा इन सभी नामों से कहां डरने वाली थी। मैंने बिना किसी की चिंता किए शराब को अपना साथी बना लिया पर कहां पता था कि यही शराब मेरे भीतर तन्हाई के डर को और ज्यादा बढ़ा देगी !!
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